सबद सम्हारे बोलिये ,सबद के हाथ न पाँव , एक सबद औषध करे ,एक सबद करे घाव

लो तुम्हारे नाम से आज एक ब्लॉग (हिंदी चिठ्ठा )ही बन गया। 

शिवे !अपनों को बहुत देर तक संशय में नहीं छोड़ना चाहिए। उन्हें कोई मानसिक क्लेश पहुंचे तो वेदना हमें ज्यादा होती है। इसलिए अनकंडीशनल तुरता मुआफी माँगता हूँ इसी ब्लॉग की प्रथम पोस्ट में.

सबद  सम्हारे  बोलिये ,सबद के हाथ न पाँव ,

एक सबद औषध करे ,एक सबद करे घाव। 

हैपीनेस मंत्र ने निस्संदेह कबीर के उस दोहे -

धीरे -धीरे रे मना धीरे ही सब होय ,

माली सीचें सौ घड़ा ,ऋतु  आय फल होय।

में व्यंग्य बाण चलाये थे युवा भीड़ पर.  

पर "तुम" युवा भीड़ कहाँ हो तुम तो युवा भीड़ की मार्गदर्शिका हो। 

मैं उसी रोज़ से बालवत तुम्हारी ऊँगली पकड़ के चलता रहा हूँ जब तुमने मेरे प्रति अपनी मम्मी के प्रति यकसां उदगार व्यक्त किये  थे -विपश्यना के मार्फ़त -अंकल हम आपको सोलह साल का बना देंगे आप ये बारहा शरीर छोड़ने की बात क्यों करतें हैं। मैं मम्मी को भी यही कहतीं हूँ। 

मातेश्वरी मैं ऐसी हिमाकत कैसे कर सकता हूँ -तुम्हें ही आहत कर बैठूं। तुम्हारे सापेक्ष मैं बालवत हूँ बालवत ही रहूँगा तुम शक्ति का अक्षय स्रोत हो मातृशक्ति का।ममत्व तुम में बेहद का है कर्मठता कर्म के प्रति समर्पण लक्ष्य की ज़ानिब बढ़ने का नैरंतर्य भी गज़ब का है तुम्हारे पास। 


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कबीर के दोहे "धीरे -धीरे रे मना .....का उल्लेख मैं ने  सुबह के ईमेल के संदर्भ में ही किया  था उसी भाव का विस्तार था -हाँ तुम वक्त रहते चल पड़ी हो उस रास्ते पर जो श्रेयस का मार्ग है हमें भगवान् की और ले जाता है। 

  

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